Saturday, October 18, 2014

बदलते जीवन-मूल्‍य और साहित्‍य


साहित्य, समाज से अलग नहीं किया जा सकने वाला एक हिस्‍सा है. मानव-समाज किसी न किसी रूप में साहित्‍य से जुड़ा रहा है. साहित्‍य शब्‍द का अर्थ ही है कि हित के साथ या हित सहित चलने वाला माध्‍यम. याने जो कार्य प्रत्‍यक्षत: माता-पिता, गुरूजन सदियों से अपनों के लिये करते आये हैं वही और उससे भी बड़े स्‍तर पर साहित्‍य मानव समुदाय के लिये करता आ रहा है. दुनिया में सामान्‍यत: वही साहित्‍य प्रचलित हो पाता है जो किसी न किसी रूप में जीवन-मूल्‍यों से जुड़ा हो या जीवन मूल्‍यों को दर्शाता हो. प्राचीनकाल से ही शास्‍त्र-विद्या और साहित्‍य दोनों समानांतर रूप से समाज में चले आ रहे हैं. जहॉं शास्‍त्र परंपरागत रूप से जीवन-मूल्‍यों का निरूपण करते हैं वहीं साहित्‍य  कविता, कहानी या अन्‍य रूपों में इसे गूँथकर निरूपित करता है. साहित्‍य किसी समाज के देशकाल, वातावरण, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्‍थितियों को भी समझाने में मदद करता है जबकि शास्‍त्र में इसके लिए अलग से खास लेखन किया जाता है. इस प्रकार हर युग में साहित्‍य-अध्‍ययन समाज की बदलती दशा और दिशाओं का परिचय कराता है जिसमें जीवन-मूल्‍य भी शामिल होते हैं.

जहॉं तक भारतीय साहित्‍य में जीवन मूल्‍यों का प्रश्‍न है, ये समय-समय पर कई तरह से अभिव्‍यक्‍त हुए हैं. 19 वीं शताब्‍दि में देश, विदेशी शासन से तंग था अत: विशेषकर हिन्‍दी में भारतेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र से लेकर प्रेमचंद और महाकवि प्रदीप से लेकर सुभद्राकुमारी चौहान व अन्‍य सभी ने देश-भक्‍ति, भ्रष्‍टाचार व शोषण से उन्‍मूलन, गॉंधीवादी विचारधारा और नीतिपरक विचारधारा को साहित्‍य के ज़रिये पहुँचाया जिससे तत्‍कालीन समाज के सभी वर्ग बहुत प्रेरित और लाभान्‍वित हुए. 19 वीं सदी का साहित्‍य हिन्‍दी में कालजयी माना जाता है. इसी सदी में रामायण, महाभारत, पंचतंत्र और गीता की रचनाऍं लोगों को हिन्‍दी के साथ-साथ जन-भाषाओं में अनुवाद के माध्‍यम से पढ़ने मिली जो पहले संस्‍कृत, अवधि या अन्‍य भाषाओं में हुआ करती थीं. इसी दौर में हमें हमारा राष्‍ट्र–गीत जन-गण-मन और तरान-ए-हिन्‍द सारे जहॉं से अच्‍छा, हिन्‍दोस्‍तॉं हमारा मिला. विभिन्‍न तरह के साहित्‍य से मानव-समाज के साथ भाषाओं का भी फायदा हुआ. भाषाओं में विभिन्‍न विषयों की शब्‍दावली और उनसे संबंधित विचारों को अभिव्‍यक्‍ति देने का ढंग तैयार हुआ जिसे हम शैली कहते हैं. इस प्रकार साहित्‍य से सभी को चौतरफा लाभ मिला और आज भी मिल रहा है. इस समय के साहित्‍य के काल की एक और विशेष बात भी थी कि इस समय की साहित्‍यिक रचनाओं के आधार पर कई बेहतरीन फिल्‍में भी बनीं. प्रेमचंद की कहानी पर बनी शतरंज के खिलाड़ी और फणिश्‍वरनाथ रेणु के उपन्‍यास पर बनी फिल्‍म तीसरी कसम इनके उदाहरण हैं. कुछ आत्‍मकथाएं भी कालजयी हुईं जिनमें गॉंधी जी की सत्‍य के प्रयोग शामिल है. गॉंधी जी की यह जीवनी हर उम्र के लोगों में सच्‍ची घटनाओं के ज़रिये जीवन-मूल्‍य भर देने के लिए काफी थी. इसका हर पाठक प्रभावित और परिवर्तित हुए बिना नहीं रह पाया. इसी प्रकार लेव टालस्‍टाय, मक्‍सिम गोर्की जैसे विदेशी लेखकों का भी साहित्‍य अनुवाद के ज़रिये पढ़ने मिला. इनसे विदेशी समाज के जीवन-मूल्‍य और वहॉं के सामाजिक हालात की जानकारी भी हमारे समाज को मिली. दूरदर्शन के ज़रिये भी देश के प्रचलित साहित्‍य के आधार पर कार्यक्रम तैयार कर लंबे समय तक चलाये गये जिससे करोड़ों लोगों तक इस माध्‍यम से हमारी सभ्‍यता, संस्‍कृति और जीवन-मूल्‍य पहुँचाने में कामयाबी मिली.

साहित्य और संस्‍कृति की यात्रा साथ-साथ चलती है. किसी समय की संस्‍कृति उस समय-काल के रीति-रिवाज, विचारधारा आदि के माध्‍यम से मनुष्‍य की जीवन के प्रति सोच को दर्शाती है. याने, साहित्‍य की यात्रा मानव समाज की यात्रा भी है. कई बार यह कहना कठिन हो जाता है कि जैसा समाज होगा, वैसा साहित्‍य या जैसा साहित्‍य होगा, वैसा समाज. साहित्‍य आगे आने वाले समय को भी देखता व इसे तय करता है.

इस प्रकार, 19 वीं शताब्‍दी के साहित्‍य ने बीसवीं शताब्‍दी के साहित्‍य की दिशाएं भी तय कर दीं. हम आजादी के बाद धीरे-धीरे परंपराओं से हठकर आधुनिकता अपनाने लगे. वैज्ञानिक विकास और तकनीकी विकास से जीवन आरामदायक होने लगा. कम समय में अधिक काम और अधिक कमाने की सोच समाज में बढ़ने लगी. नीति और परंपरा से अधिक, आर्थिक रूप से मजबूत व्‍यक्‍ति का व्‍यवहार व विचारधारा अधिक अपनाये जाने लगे. इन सबका साहित्‍य में भी समावेश होने लगा. कहानी, कथा या कविताओं में पात्र पुरानी परंपराओं और विचारधाराओं से हठकर खुले माहोल, अंध-विश्‍वास से अलग, अधिक जागरूकपरक बातों को शामिल किया जाने लगा. स्‍त्री शिक्षा, उसकी तरक्‍की, स्‍वेच्‍छा से जीवन जीने के उसके निर्णय संबंधी विचारधाराओं को साहित्‍य के ज़रिये स्‍थान मिलने लगा. समाज की पिछड़ी जातियों से संघर्ष कर तरक्‍की करने वाले कई पात्र साहित्‍य के ज़रिये नये जीवन-मूल्‍य देने में कामयाब रहे. भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ अब्‍दुल कलाम की जीवनी दि विंग्‍स आफ फायर हिन्‍दुस्‍तानी साहित्‍य में एक मील का पत्‍थर है. संघर्ष और मेहनत से कामयाबी पाने की यह यह एक बेहतरीन मिसाल है. इसी तरह चेतन भगत की फाइव प्‍वाइंट समवन और टू स्‍टेट्स आज के जीवन-मूल्‍यों को दर्शाने वाली प्रचलित कृतियां हैं.

इस तरह कहा जा सकता है साहित्‍य समय की तरह सदा से गतिशील रहा है. मनोरंजन हो या ज्ञानपरक, साहित्‍य ने हमेशा मानव-समाज को सोचने पर मजबूर करते हुए आगे बढ़ने की दिशा दी है जिसके लिए भारतीय भाषा साहित्‍य के हर लेखक का आभार माना जाना चाहिए.