Monday, September 22, 2014

हिंदी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में


समय-समय पर किसी भी काम का जायज़ा लेना बेहतरी के लिए अच्‍छा और जरूरी होता है. पर, किसी भाषा की स्‍थिति का आकलन करना और उस पर कोई ठोस परिणामी बात कहना आवश्‍यक नहीं कि प्रामाणिक सिद्ध हो. जहॉं तक हिन्‍दी के वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य का प्रश्‍न है, अनुभव यही कहता है कि महाकवि प्रदीप के ज़माने से वर्तमान में प्रसून जोशी तक हिन्‍दी की चाहत रखने वाला तबका हमारे देश में हमेशा रहा है जिसकी संख्‍या अब करोड़ों में बढ़ चली है. आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद इस तबके ने जब भी जरूरत पड़ी देश में बदलाव के आंदोलन की आवाज़ उठायी जिसका माध्‍यम अधिकतर आम ज़बान हिन्‍दी रही. निश्‍चित है इसके प्रयोग की प्रांतो और भौगोलिकता के आधार पर कई छटाएं है जो इसी का अभिन्‍न हिस्‍सा  है.  

व्‍यवसाय, पत्रकारिता और साहित्‍य के नज़रिये से देखें तो भाषा-प्रयोग और विस्‍तार की भौगोलिक सीमाएं खत्‍म हो गयी हैं. अपने देश के अलावा सूरिनाम, मारिशस, थाइलैण्‍ड जैसे छोटे क्षेत्रों से निकल हिन्‍दी का प्रचार-प्रसार आधिकारिक तौर पर अमरीका, चीन, जापान, समस्‍त यूरोप और अफ्रिकी देशों में लगातार बढ़ रहा है. ऐसा केवल हिन्‍दी के साथ नहीं बल्‍कि चीनी भाषा के साथ भी हो रहा है. इसके कुछ अहम राजनीतिक और रणनीतिक कारण भी हैं जिनसे हम सब वाकिफ़ हैं. हजारों की संख्‍या में देशी-विदेशी नागरिक इस भाषा के सीखने-जानने के महत्‍व को समझने लगे हैं. भाषा की शास्‍त्रीयता और प्राचीन भारत की जानकारी का माध्‍यम आज भी आधिकारिक तौर पर संस्‍कृत ही है पर देश और दुनिया में ये बात अब स्‍थायी तौर पर माने जाने लगी है कि तेजी और सरलता से संवाद विभिन्‍न आई टी और अन्‍य आधुनिक माध्‍यमों से करना हो तो हिन्‍दी सबसे सशक्‍त माध्‍यम है. पिछले साल-दो-साल की ही स्‍थिति पर नज़र डालें तो देश में हिन्‍दी-भाषी प्रांतीय चुनाव और चंद महीने पहले हुए देश के आम चुनाव से हिन्‍दी की ताकत और इस देश की जनता में उसकी व्‍यवहार्यता और स्‍वीकार्यता की नयी बानगी सामने रखी है. सत्‍ता परिवर्तन के बाद एक बदलाव नज़र आने लगा है. देश की राजनीतिक और शासकीय विचारधार देश और दुनिया में संभवत: आज़ादी के बाद पहली बार हिन्‍दी से अंग्रेजी और अन्‍य विदेशी भाषाओं में अनुवाद के माध्‍यम से जाने लगी है जो एक बड़ा परिवर्तन कहा जा सकता है. शासकीय कामकाज में हिन्‍दी के प्रयोग में अचानक गंभीरता और प्रयोग की मात्रा में बढ़ौतरी दर्ज की गयी है. वास्‍तव में बरसों से देशवासियों को यही बात सालती रहती थी कि देश हमारा, शासन हमारा, व्‍यवस्‍था  हमारी पर संचार और संप्रेषण का माध्‍यम अंग्रेजी क्‍यों? क्‍या ये शासन और शासक के बीच दूरी बनाये रखने के लिए अपनाया गया तरीका था या अंग्रेजी जानने और नहीं जानने वाले की हैसियत को बताने का.

ये भी दलीलें दी जाती रहीं कि प्राशासनिक और तकनीक का माध्‍यम भारतीय भाषाएं, विशेषकर हिन्‍दी  नहीं हो सकती. लेकिन पोलियो से लेकर एड्स तक और सेल से लेकर सेटलाईट तक की जानकारी यदि इस देश के आम जन तक पहुँची है तो उसका माध्‍यम हिन्‍दी होने की वजह से ही हो पाया है. नासा, माइक्रोसाफ्ट, गूगल, आई बी एम, ओरॉकल, टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो अथवा अन्‍य आई-टी और देश-विदेश की वैज्ञानिक संस्‍थाओं में कार्यरत भारतीयों ने तकनीकी विषयों की जानकारी के आदान-प्रदान के लिए बेझिझक हिन्‍दी को अपनाया है. माइक्रोसाफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्‍टम के सिद्धांत और प्रयोग के मैन्‍युअल आज हिन्‍दी में उपलब्‍ध हैं. एच डी एफ सी जैसी संस्‍था अन्‍य राष्‍ट्रीयकृत बैंको से पहले पूरी वेबसाइट हिन्‍दी में बनाकर जारी करती है ताकि ये संस्‍था और उनका व्‍यापार आम जन तक आसानी से पहुँच सके. 

हिन्‍दी या भारतीय भाषाओं में क्‍या संभव है और क्‍या नहीं से अधिक जरूरी इनके प्रयोग के प्रति हमारी इच्‍छा शक्‍ति और अपनेपन के भाव और गौरव का है. सरकारें और शासक इसका सांकेतिक रूप में प्रयोग कर देश की भाषा-संस्‍कृति को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है जो इस नयी सरकार की नियत में भी झलक रहा है. यदि ऐसा होना जारी रहता है तो आजादी से अब तक इस देश को जागृत कर सबको जोड़ने वाली रही हिन्‍दी की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी. पीढ़ियां अवश्‍य बदल गयी हैं पर उनके जीन्‍स और डी एन ए वही हैं. याने ये देश के बनुयादी गुण, इसकी सोच और इसके अपनाने की ताकत अब भी वही है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्‍दी और भारतीय भाषाओं का भविष्‍य उज्‍जवल है. इसके  प्रयोग का विस्‍तार निरंतर बढ़ता रहेगा. इस दौरान भाषा के प्रयोग में बदलाव भी तेजी से आएंगे और आ भी रहे हैं. इन्‍हें खासकर इलेक्‍ट्रॉनिक प्रयोग के माध्‍यमों को ध्‍यान में रखकर स्‍वीकारने में कोई बुराई नहीं. लेख की भाषा-शैली और एस एम एस की भाषा-शैली में अंतर को स्‍वीकार करना ही पड़ेगा.

एक और जरूरी बात है इस मूमेंट को बनाये रखने और बढ़ाने की. खासकर शासन व्‍यवस्‍था व शिक्षण संस्‍थानों में. विशेषकर, विश्‍वविद्यालयों के शिक्षकवर्ग को साहित्‍य, पत्रकारिता, व्‍यवसाय और मनोरंजन की विधाओं से आगे बढ़ सभी विषयों के पठन-पाठन में अधिकारपूर्वक जानकारी रखने, इनका अद्यतन कर छात्र और विभिन्‍न संचार माध्‍यमों से इन्‍हें समाज और जन-जन तक पहुँचाने का. जैसे आई-टी प्‍लैटफार्म और युनिकोड माध्‍यम से दुनिया की लगभग सौ प्रचलित भाषाओं में सब कुछ एक-दूसरे तक पहुँचाना आसान हो गया है और इससे भौगोलिक सीमाएं समाप्‍त होकर सरलता व्‍याप्‍त हुई है, ठीक वैसे ही अपने-अपने ऐच्‍छिक विषयों के बंधनों से मुक्‍त होकर अध्‍ययन-अध्‍यापन में डाइवरसिटी अपनाने पर भाषा के प्रयुक्‍ति पक्ष में दी जाने वाली तथाकथित नकारात्‍मक दलीलें समाप्‍त होकर पढ़ने-पढ़ाने में विश्‍वास का नया माहोल पैदा होगा. याने हिन्‍दी का वर्तमान और भविष्‍य उज्‍जवल बनेगा.