डा. हरिवंश राय बच्चन की पुण्य तिथि १८ जनवरी पर श्रद्धांजलि - परशुराम राय, आर्डिनेंस फैक्ट्री, कानपूर
साकी बाला के हाथों में
भरा पात्र सुरभित हाला
पीने वालों के सम्मुख था
भरा हुआ मधु का प्याला
मतवालों के मुख पर फिर क्यों
दिखी नहीं थी जिज्ञासा
पीने वाले मतवाले थे
फिर भी सूनी मधुशाला ।। 1 ।।
मधु का कलश भावना का था
नाम आपका था हाला
पीने वाले प्रियजन तेरे
कान कान था मधुप्याला
तेरी चर्चा की सुगंध सी
आती थी उनके मुख से
यहॉ बसी थी तेरी यादें
और सिसकती मधुशाला ।। 2 ।।
छूट गए सब जग के साकी
छूट गई जग की हाला
छूट गए हैं पीने वाले
छूट गया जग का प्याला
बचा न कुछ भी, सब कुछ छूटा
जग की मधुबाला छूटी
छोड़ गए तुम अपनी यादें
प्यारी सी यह मधुशाला ।। 3 ।।
मृत्यु खड़ी साकी बाला थी
हाथ लिए गम का हाला
जन-जन था बस पीनेवाला
लेकर सॉसों का प्याला
किंकर्तव्यमूढ़ सी महफिल
मुख पर कोई बोल न थे
चेहरों पर थे गम के मेघ
आँखों में थी मधुशाला ।। 4 ।।
पंचतत्व के इस मधुघट को
छोड़ चले पीकर हाला
कूच कर गए इस जगती से
लोगों को पकड़ा प्याला
बड़ी अजब माया है जग की
यह तो तुम भी जान चुके
पर चिंतित तू कभी न होना
वहाँ मिलेगी मधुशाला ।। 5 ।।
वहाँ मिलेंगे साकी तुमको
स्वर्ण कलश में ले हाला
इच्छा की ज्वाला उठते ही
छलकेगा स्वर्णिम प्याला
करें वहॉ स्वागत बालाएँ
होठों का चुम्बन देकर
होगे तुम बस पीने वाले
स्वर्ग बनेगा मधुशाला ।। 6 ।।
मन बोझिल था, तन बोझिल था
कंधों पर था तन प्याला
डगमग-डगमग पग करते थे
पिए विरह का गम हाला
राम नाम है सत्य न बोला
रट थी सबकी जिह्वा पर
अमर रहें बच्चन जी जग में
अमर रहे यह मधुशाला ।। 7 ।।
दुखी न होना ऐ साकी तू
छलकेगी फिर से हाला
मुखरित होंगे पीने वाले
छलकेगा मधु का प्याला
नृत्य करेंगी मधुबालाएँ
हाथों में मधुकलश लिए
सोच रहा हूँ कहीं बुला ले
फिर से तुमको मधुशाला ।। 8 ।।
क्रूर काल साकी कितना हूँ
भर दे विस्मृति का हाला
खाली कर न सकेगा फिर भी
लोगों की स्मृति का प्याला
इस जगती पर परिवर्तन के
आएँ झंझावात भले
अमर रहेंगे साकी बच्चन
अमर रहेगी मधुशाला ।। 9 ।।
अंजलि का प्याला लाया हूँ
श्रद्धा की भरकर हाला
भारी मन है मुझ साकी का
ऑखों में ऑसू हाला
मदपायी का मतवालापन
ठहर गया क्यूँ पाता नहीं!
अंजलि में लेकर बैठा हूँ,
श्रद्धा की यह मधुशाला ।। 10 ।।
नमस्कार राय साहब,
यह ब्लाग (मनोज) तो आप ही के ज़रिये आज पढ़ने को मिल रहा है. सच कहूँ तो आपकी इस रचना का बड़ा इंतज़ार था. शायद शुरू के दो-तीन लोगों में मैं रहा हूँगा जिसे यह रचना आपने लिखते ही सुनाई थी. आज जैसे ही रचना देखी लगा आप सामने सोफे पर आमने-सामने बैठे रचना सुना रहे हों. सारी स्मृतियॉं एक चलचित्र बनकर ऑंखों के आगे चल रही हैं. संभवत: रचना सुनाने का समय भी इतनी ही रात्रि का रहा होगा. मुझे याद है यह रचना आपने रेल यात्रा करते समय लिखी थी. वह भी शायद बच्चन जी की पुण्यतिथि पर. मेरे अब तक की साहित्यिक गतिविधियों के दौरान शायद ही इतनी सटीक रचना बच्चन जी की मधुशाला या उनके जीवन के फलसफे पर किसी ने लिखी होगी. यह कहूँगा कि हम सब मिलकर जैसी श्रद्धांजलि बच्चन जी को देना चाहते थे वह आपने इसे लिखकर दे दी है. हम सब इस खास रचना के लिए आभारी हैं. मैं इस ब्लाग के माध्यम से लिखना चाहूँगा कि भले ही कम रचनाएं आपने लिखीं होंगी पर उन रचनाओं का शिल्प, कथ्य और गांभीर्य पाठक में एक पात्रता की मॉंग करता हैं. रचनाएं पढ़कर पाठक को लगता है कि मेरा भी क्लास ऊँचा हो गया है. बहुत तीव्र अनुभूतियॉं आपके काव्य में मैंने महसूस की हैं, बल्िक कहूँगा कि आधुनिक काव्य में शास्त्रीय ढंग से बिम्बों का प्रयोग बहुत कम ही कवि इतने ढंग से कर पाते हैं. मुझे याद है आप कविता समझने का तरीका भी बताया करते थे. यह कोरी प्रशंसा नहीं अपितु दशाधि वर्षों से भी अधिक समय से आप से जुड़े रहने और कई घण्टों व दिनों की चर्चाओं के बाद यह कह रहा हूँ. मुनासिब बात कहना और मुनासिब व्यवहार करना यह आपका स्वभाव है जो आपकी रचनाएं बोलती हैं. जब कविता बोलने लग जाए तो समझने के लिए कुछ अधिक शेष नहीं रह जाता. रह जाता है तो बस उसे अपनाना.
आपकी और भी रचनाओं, खासकर अन्यान्य विषयों पर लेखों की प्रतीक्षा है. आशा है आप अपने विचारों से हमें लाभान्वित करते रहेंगे. मनोज कुमार जी को भी बधाई कि बहुत सराहनीय कार्य यह ब्लाग आरंभ कर उन्होंने किया है. यह उनका ब्लाग नहीं बल्िक हम सबका ई-चबूतरा है जिस पर हमसब साथ नहीं बैठते बल्कि हमारे लिखे विचार बैठ बतियाते हैं.
होमनिधि शर्मा
चलिए हमने भी आपके बहाने मधु चख ली!
ReplyDeleteकभी मधुशाला की परौदी लिखी थी मोरारजी के शिवाम्बुसेवन को लक्ष्य करके.मौका निकलकर पढ़वाएंगे आपको .