Sunday, January 31, 2010

शनिवार, ३० जनवरी २०१०

श्रद्धांजलि, बापू


बापू के निर्वाण दिवस पर
श्रद्धांजलि, बापू
परशुराम राय





राजघाट पर अब भी,
बापू,
अग्निकुण्ड में
सत्य, अहिंसा की ज्वाला
जलती है,
या लगता है
सत्य, अहिंसा के
सजल नयन से
बापू!
देख रहे तुम भारत को।
ये ही दोनों कदम तुम्हारे
अन्तरिक्ष से
नाप रहे -
भारत की धरती।
पूर्वाग्रहों की जड़ता को
नाम दिया
सत्याग्रह का-
उत्तराधिकारी
जो बताते आपका,
अपनी ही
गलती से
गलती करना
सीख रहे हम।
तलवार गलाकर
तकली गढ़ी जो आपने
कब की बन गई
फिर तलवारें।
प्रजातंत्र के तीनों बन्दर
अब तो
न अपनी बुराई करते हैं
न सुनते हैं और न ही
देखते हैं।
उनकी मंगलवाणी भी
करती
अमंगल घोषणा।
किंकर्त्तव्य-विमूढ़ हो
भारत
दे रहा तुम्हें
श्रद्धांजलि
बापू!
दे रहा तुम्हें
श्रद्धांजलि, बापू
श्रद्धांजलि, बापू।
---0---राय साहब,
जैसे मैंने पहले कहा था कि जहॉं व्‍यक्‍ित, विचार या कविता अलग नहीं होते  वहॉं.....
'शोला हूँ, भड़कने की गुजारिश नहीं करता.
 सच मुँह से निकल जाता है, कोशिश नहीं करता'.


स्‍पष्‍टवादी परशुराम यदि आज गॉंधी के हिन्‍दुस्‍तान को देखेंगे तो शायद हम सबको ऐसा ही देश दिखाई देगा. यह कविता नहीं गॉंधी और उनके दर्शन की तरह आज के सच का निचोड़ है.

जहाँ कवि और कविता एक हो जाए तो कहने को कुछ नहीं रह जाता.

बापू से आशीष मॉंगते हुए कि वे हम सबको सद्बुद्धी दें.


होमनिधि शर्मा.

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