पिछले दो सालों की तरह इस साल के शुरू में
ही हमारे ममेरे साढ़ू श्री अजीत का
शोलापुर से हुरडा खाने आने का निमंत्रण
आया. निमंत्रण का इंतजार तो था ही, सो इसके मिलते ही हम इंतजाम और इंतजार में लग गये. 16 जनवरी को
साली-साढ़ू के साथ मेरा परिवार शोलापुर के लिए चल पड़ा. साथ मुझे भी जाना था पर, ऑफिस में एक
संसदीय समिति के दौरे के कारण नहीं जा पाया. साथ यात्रा करने का आनंद तो खोया ही
और मुझे अलग से 17 तारीख को दौड़-भाग कर बस से जाना पड़ा. करीब सवा तीन सौ
किलोमीटर की यात्रा में पूरे नौ घण्टे लगे. सभी 16 तारीख को आराम से पहुँच गये थे
पर मुझे पोस्ट मार्डनिज्म़ काल में इंजन वाली ‘टमटम’ और बदहाल सड़क का ‘सफ़र’ करना पड़ा. रास्ते
में जिन-जिन जगहों पर बस रुकी, गंदगी, बदइंतज़ामी का
नज़ारा था. कहीं पर साफ-सुथरी चाय भी नहीं मिल पायी. ढाबों पर बंद पानी की बोतल 3
से पॉंच रुपये ज्यादा देकर यात्री खरीदने पर मजबूर हो रहे थे. ज़हीराबाद के सरदार
जी के ढाबे के बाहर दुकानवाले ने बताया कि यहॉं सभी जगह ऐसे ही दामों पर चीज़ें
बिकती हैं, जिसको जो करना हो
वो कर ले. अचानक ‘आप’ और अरविंद
केजरीवाल और उनकी झाड़ु याद आई. अव्यवस्था और मन-मानी लूट के बाजार में उन्हें झाड़ू
लेकर क्यूँ सड़क पर उतरना पड़ा यह महसूस हो रहा था.
रात 9.30 के करीब अजीत जी के घर पहुँच
देखा तो उनकी मॉं और हमारी मामी- सास के 75वें जन्मदिन का कार्यक्रम चल रहा था. दोनों
बड़ों की ओर से छोटे-बड़े चालीस-पचास परिवार के लोग मिल उनके हीरक जन्म-दिन का
उत्सव मना रहे थे. मैं तो सीधे ऊपर गया और ताजादम होकर सुबह के उपमे और रोटी से
भूख और बेचैनी शांत की. बाद नीचे जाकर कार्यक्रम में शामिल हो गया. मेरे लिये यह
पहला मौका था किसी के 75 वें जन्मदिन पर शामिल होने का. नातिन-पोतीयों और नज़दिकी
सगे-संबंधियों ने दोनों के साथ जुड़े अपने-अपने अनुभव एक-एक कर सुनाये. इन बड़ों
से क्या सीखा और इनके जीवन की चर्चा कर रहे थे. बच्चों ने गीत गाये और नृत्य
प्रस्तुत किया. अजीत जी की बेटी अपूर्वा को गाते और नाचते देख खुशी हुई. अपूर्वा
की मॉं अलका ने ‘मोहे पनघट पर
नंदलाल छेड़ गयो रे’ गीत गाया और
अपूर्वा ने उस पर नृत्य प्रसतुत किया. इनके बाद अलका के मामा ने दो भजन सुनाये.
बाद पता चला वे भी अपने शौक और अभ्यास से गाते हैं. इनके साथ-साथ ही भेलपूरी बनने
की सुगंध आ रही थी. कुछ ही देर में परोसे जाने लगी. अजीत जी ने कहा कि सुबह के
दमदार खाने के बाद रात भेल और श्रीखण्ड पर ही कटनी है अत: भर-पूर भेल खायी जाए.
सभी ने जमकर खायी. मैं केवल श्रीखण्ड खाकर तृत्प हो गया. बचपन में हैदराबाद के
सुलतान बाजार स्थित रामभरोसे के पास पिताजी ले जाकर श्रीखण्ड और अन्य गुजराती
चीज़ें खिलाया करते थे. रामभरोसे की दुकान में जाते ही दूध से बनी चीज़ों की सुगंध
के साथ केसरयुक्त श्रीखण्ड खाने का जैसा स्वादानंद दिलो-दिमाग़ में बसा था वह
अजीत जी के घर गाय के असली दूध से बने श्रीखण्ड को खाकर ताजा हो आया. गज़ब का स्वाद
और खट-मिट मिठास. कार्यक्रम चलता रहा और इस बीच मेरे साढ़ू हेमंत और ममेरे साले
अशोक के साथ गपशप होने लगी. देखा तो हमारी मौसी-सास और सालियॉं भी नासिक और पूना
से आयी हुई थीं. उनकी भी कैफ़ियत ली.
इन सबके बीच पिछले दो सालों से हुरडा खाने
के बहाने मैंने भी जो इन बड़ों के साथ महसूस किया था वह मन में आने लगा था. बयॉं
तो नहीं कर पाया पर सोचा कि व्यक्त जरूर करना चाहिए. दोनों ही बज़ुर्ग महिलाओं
को देख असली सेहत का अहसास होता है. आज भी दोनों स्वस्थ और ऊर्जा से भरपूर हैं.
कान्तिमान दमकते चेहरों पर अब भी जिम्मेदारियों के प्रति प्रतिबद्धता का भाव स्पष्ट
दिखायी देता है. अजीत जी की मॉं आज भी अलसेबेरे उठ घर के काम में लग जाती हैं.
हमारी मामी-सास तो आज भी दूर-दूर तक पैदल चली जाती हैं और अकेले सफर कर लेती हैं.
दोनों ही अब भी देर रात तक कामकाज में लगे रहते हैं. पिछले तीन सालों में हममें तो
बहुत परिवर्तन आया है पर इन्हें देख लगता है कि इनके साथ समय थम गया है. दोनों ही
ने जिंदगी में कई असमय तकलीफें और अकस्मात दुख झेले पर कभी इनके आगे वो झुकी
नहीं. इनकी ईश्वर में आस्था, घर के संस्कार, मजबूत सोच और
धैर्य ने सब विपत्तियों को अँगूठा दिखा दिया है. इन्हें देख बरबस ही ये पँक्तियॉं
याद आयीं कि
“दु:ख तुम्हें क्या तोड़ेगा, तुम दुख को तोड़
दो,
मेरी ऑंखों के
सपनों से तुम, अपने सपने जोड़ दो”
इन्हें देख लगता है कि ये सदा देने में
विश्वास करती रही हैं न की कुछ लेने में. इन्होंने अपने गम और दुख छिपाकर सबको
खुशी दी है. जो बात मैंने अपने मॉं-पिताजी, सास-ससुर में महसूस की, वही और वैसी इनमें भी दिखायी देती है. दिल के सच्चे, सादगी भरे, कहीं कोई
दुराव-छलाव नहीं. दिमाग में गैर जरूरी अपेक्षाओं और लालसाओं का बोझ नहीं. शायद आज
की पीढ़ी इन्हीं सब बातों में कम पड़ जाती है. मेरे लिये उनका यह हीरक दिवस उनके
स्वास्थ्य और लंबी उमर की कामना के साथ सब बड़ों को याद करने का था.
कुछ समय बाद ममेरे साले अशोक, उनके मामा, साढ़ू हेमन्त और
मैं टहलने चले गये. टहल कर लौटे तो ग्यारह बज चले थे. लौटने पर अजीत जी के जीजाजी
से भेंट हुई. बताया कि वे टाटा मोटर्स में काम करते हैं. बातों-बातों में टाटा की
कारों पर चर्चा हो गयी. एक सज्जन ने टाटा मान्जा का उदाहरण देते हुए बताया कि
टाटा की गाड़ियॉं उतनी अच्छी नहीं होती अत: ज्यादा नहीं बिकती है. अपनी बात रखते
हुए मैंने भी बताया कि इसके पीछे हमारी मानसिकता अधिक है. टाटा पूरी तरह देशी गाड़ी
है और हम अधिकतर विदेशी गाड़ियॉं पसंद करते हैं. नौजवान तो बिलकुल भी लेना नहीं
चाहते. उन्हें गाड़ी अच्छी भी हो तो लगता है कि ये किराये पर चलने वाली गाड़ीयॉं
है. इतने में जीजाजी ने बताया हमारी कंपनी इसी बात का शिकार है और हम इसे दूर करने
में लगे हैं. ऐसी ही गपशप करते हम ऊपर आ गये कि अब सोया जाय. इतने में हेमन्त जी
ने बताया कि वे अशोक का गाना मिस कर गये. हमने बिस्तर लगाया और अशोक से गाना
सुनाने की गुज़ारिश की. इस पर अशोक ने तीन सेमिक्लासिकल सूफी मिश्रीत गीत सुनाये.
मैं आश्चर्य और आनंद से सुन रहा था. अशोक से पूछा तो बताया कि उसे केवल सुन-सुनकर
सरगम सहित गाने का अभ्यास हो गया है. अक्सर हम करीब के लोगों को दूर से और देर से
जानते हैं. अशोक के संबंध में भी मैं यही कह सकता हूँ. हम लोक अलग-अलग राज्यों में
नौकरी करते हैं तो मौके कम ही आते हैं. अशोक में भी मैंने उनकी मॉं की तरह बात
नोटिस की कि वह भी सरल स्वभाव का सीधा व्यक्ति है. वह जो भी करता है लगन से
करता है. पता चला कि अशोक और अजीत जी की पत्नी अलका दोनों जुड़वॉं भाई-बहन हैं.
अलका भी बहुत परिश्रमी और संगीत साधक महिला है. फोन चार्जिंग के लिए रखते हुए
मेमण्टोज़ देखा तो अलका को भी गाने के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं. इतने में
अशोक के मामा भी जग रहे थे उनसे भी बात हुई. ज्ञात हुआ कि वे अपने समय में अधिक
नहीं पढ़ पाये पर भागवत का अध्ययन कर प्रवचन आदि करते हैं. उनका एकमात्र शौक
भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनना है. इसके लिए उन्होंने चार दिन चलने वाली बैटरी का
सैमसंग फोन खरीद अलग-अलग रागों पर आधारित अपने पंसदीदा गीत-भजन उसमें डाल रखे हैं
और उन्हें लगातार सुनते रहते हैं. हमारे साथ अशोक के ससुर जी भी थे उनसे भी परिचय
हुआ. वे भी हमारी सारी बातचीत सुन रहे थे. सोचा उनसे कल याने अगले दिन बात की जाए.
इस बीच रात का एक बज चला था और हम एक-एक कर सो गये ताकि अगले दिन समय से खेत पर
हुरडा खाने जा सकें.
शेष अगले भाग में ..........
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