........हर साल की तरह इस बार भी मुझे कार्यालय में 26 जनवरी, गणतन्त्र दिवस के अवसर पर कार्यक्रम संचालित करना था। इस अवसर पर हमारी गणतांत्रिक व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, इतिहास, जीवन-दर्शन को वर्तमान हालात से जोड़ते हुए, किसी न किसी राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर कार्यक्रम के संचालन के दौरान कुछ कहना एक परंपरा सी बन गई है. इस परंपरा से जुड़ने का अवसर मुझे मारवाड़ी हिन्दी विद्यालय, बेगम बाजार, हैदराबाद में पढ़ते हुए प्राप्त हुआ. विद्यालय भले ही हिन्दी माध्यम का रहा हो पर प्रधानाध्यापक डॉ युगलकिशोर शर्मा (संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान), डॉ बालागुरु जी (सामाजिक अध्ययन के जानकार और पुस्तकों के लेखक), श्री ईश्वरअय्या जी (पारम्परिक और आधुनिक गणित और अंग्रेजी के रोचक गुरु), श्री रघुनाथ राव जी (जीव-विज्ञान विशेषज्ञ) डॉ रामकृष्ण दाण्डिमे (भौतिक-रसायन विशेषज्ञ) डॉ नारायण रेड्डी और श्री सुब्बाराव जी (तेलुगु) व अन्य गुरुजनों ने देश-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी. जीवन मूल्य और संस्कार देकर हमें ज्ञान के साथ संस्कारित किया. मैं और मेरे साथी छात्र दोस्त आज भी फक्र महसूस करते हैं कि हम एक मामूली विद्यालय में इतने बढि़या विद्वान अध्यापकों से पढ़े. आज सोचकर सुखद आश्चर्य होता है कि उस समय के अध्यापक डॉक्टरेट जिनसे हम पढ़े. मेरे हिन्दी और राजभाषा के क्षेत्र में होने का भी एक बड़ा कारण मेरी स्कूली शिक्षा है.
खैर इसी प्रकार की दिलो-दिमाग की स्थिति होती है हर साल सो इस बार भी एक-दो दिन पहले से मन में चल रहा था कि किस खास बात पर इस बार बात की जाए. मन में आया कि हमारे ध्वज की अवधारणा के बारे में कार्यक्रम के दौरान कुछ जानकारी दूँ . इस संबंध में कुछ जानकारी थी तो कुछ जमा की। बाद में लगा कि इसे संकलित कर एक रूप दे दिया जाए तो सभी के काम आएगी. सो प्रस्तुत है.....
भारतीय तिरंगे का इतिहास
"सभी राष्ट्रों के लिए एक ध्वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्ट करना पाप होगा। ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान है।"
"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्यूइश, पारसी और अन्य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।"
- महात्मा गांधी
प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना आन्ध्र-प्रदेश के पिंगली वेंकय्या ने की थी. इसे इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था जो अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने से कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इस ध्वज को पहली बार फहराने महिला स्वातंत्र्य वीर श्रीमती हंसा मेहता ने श्री नेहरू को सौंपते हुए कहा था कि यह ध्वज इस देश की समस्त महिलाओं की ओर से राष्ट्र को एक भेंट और सलाम है जिसकी लाज आप सबको बचाए रखना है.
इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। यह धर्म चक्र निरन्तरता का प्रतीक है. इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
तिरंगे का विकास
यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौर से गुजरा। एक रूप से यह राष्ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं:
1906 में भारत का गैर आधिकारिक ध्वज
1907 में भीकाजीकामा द्वारा फहराया गया बर्लिन समिति का ध्वज
इस ध्वज को 1917 में गघरेलू शासन आंदोलन के दौरान अपनाया गया
इस ध्वज को 1921 में गैर अधिकारिक रूप से अपनाया गया
इस ध्वज को 1931 में अपनाया गया। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीय सेना का संग्राम चिन्ह भी था।
भारत का वर्तमान तिरंगा ध्वज
1907 में भीकाजीकामा द्वारा फहराया गया बर्लिन समिति का ध्वज
इस ध्वज को 1917 में गघरेलू शासन आंदोलन के दौरान अपनाया गया
इस ध्वज को 1921 में गैर अधिकारिक रूप से अपनाया गया
इस ध्वज को 1931 में अपनाया गया। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीय सेना का संग्राम चिन्ह भी था।
भारत का वर्तमान तिरंगा ध्वज
प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
द्वितीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तृतीय ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया । यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।
ध्वज के रंग
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
चक्र
इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
ध्वज संहिता
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें।
सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।
26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए:
क्या करें
- राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
- किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का आरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
- नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों के लिए अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
क्या न करें
- इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दे या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
- इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
- किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को हमारे ध्वज से ऊंचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।
ध्वज संबंधी सूचनाएं तो स्थाई महत्त्व की हैं ही; आपने जो संस्मरणात्मक भूमिका लिखी है वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.
ReplyDeleteबहुत खूब.
राष्ट्रीय ध्वज की यात्रा का सुंदर एवं शिक्षाप्रद यात्रा के लिए आभार॥ बसंत पंचमी की शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आपने।
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ReplyDeleteअपने तिरंगे पर इस बेहतरीन जानकारी कों उपलब्ध कराने के लिए आभार । अफ़सोस होता है जब कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा तिरंगे का अपमान किया जाता है । इसी विषय पर एक लेख लिखा है ,वक़्त निकालकर एक नज़र डालियेगा --
ये तिरंगा उम्र भर कश्मीर पर लहराएगा ..
http://zealzen.blogspot.com/2011/01/blog-post_25.html
आभार ।
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