दिव्या जी, नमस्कार. सबसे पहले तो मेरा ब्लाग देखने के लिए धन्यवाद. मैं बरसों सोचता रहा कि एक ऐसा माध्यम होना चाहिए जिसके द्वारा हम अपनी बात एक-दूसरे तक बिना किसी रुकावट के पहुँचा सकें. इंटरनेट के आ जाने से यह सिद्ध हो पाया. आप और हम एक-दूसरे से परिचित भले ही न हो, इंटरनेट और इस पर हिन्दी के सहारे हमारा लेखन हमें सबसे जोड़ता चला जा रहा है.
जहॉं तक कश्मीर का सवाल है. मेरे अपने अध्ययन और जानकारी से कह सकता हूँ कि हमने इस मुद्दे को ठीक से हल नहीं किया और न ही हमारी नीति ही इस पर स्पष्ट है. कल ही की बात है पी डी पी की महबूबा मुफ्ती ने अपने प्रेसेंटशेन में कश्मीर के कुछ भाग को चीन का हिस्सा घोषित किया है और इस पर सरकार खामोश है. 26 जनवरी के अवसर पर यासीन मलिक की तिरंगा न फहराने की खुली चुनौती और उस पर की गई कार्रवाई बताती है कि सरकार इस मुद्दे पर दो तरफा नीति अपनायी हुई है और ना ही पूरी ताकत लगा रही है. अब तक जितनी सरकारे आयीं, सबने मुस्लिम वोट की राजनीति के आगे देश को शर्मसार किया है. आतंकियों को पनाह देने वाले और खुद आतंकी हम आम जन से ज्यादा सुरक्षित और मजे में है. सवाल देश-भक्ति का नहीं राजनीतिक स्वार्थ का है. प्रजातंत्र का सबसे बड़ा डिमेरीट यही है कि यदि इसके प्रतिनिधि इसका इस्तेमाल स्वार्थपरक उद्येश्यों के लिए करते हैं तो यह सुसाइडल साबित होता है. ईश्वर इनको सद्बबुद्धि दे कि ये कश्मीर को मिस्र से जोड़कर देख रहें हैं और सरकार काला चश्मा पहने बैठी है. भारत के विदेश मंत्री यू एन ओ में पुर्तगाली मंत्री का भाषण पढ़ते हैं और इस भूल पर खेद तक व्यक्त नहीं करते अपितु इसे ग्लोरिफाई कर कहते हैं कि 'दूसरों का भाषण पढ़ना कोई गलत बात नहीं है. मैं क्या कर सकता हूँ मेरे सामने ढेरों कागजात थे अत: ऐसा हो गया.' अब ऐसे विदेश मंत्री का कहना हो तो एक दिन कश्मीर देकर कहेंगे ये तो देना ही था......
कश्मीर पर क्रमागत ऐतिहासिक जानकारी देकर जागरुक करने के लिए धन्यवाद और आपके रेल में दिखाये गये साहस पर बधाई. प्रेरणापद संस्मरण.
होमनिधि शर्मा
जहॉं तक कश्मीर का सवाल है. मेरे अपने अध्ययन और जानकारी से कह सकता हूँ कि हमने इस मुद्दे को ठीक से हल नहीं किया और न ही हमारी नीति ही इस पर स्पष्ट है. कल ही की बात है पी डी पी की महबूबा मुफ्ती ने अपने प्रेसेंटशेन में कश्मीर के कुछ भाग को चीन का हिस्सा घोषित किया है और इस पर सरकार खामोश है. 26 जनवरी के अवसर पर यासीन मलिक की तिरंगा न फहराने की खुली चुनौती और उस पर की गई कार्रवाई बताती है कि सरकार इस मुद्दे पर दो तरफा नीति अपनायी हुई है और ना ही पूरी ताकत लगा रही है. अब तक जितनी सरकारे आयीं, सबने मुस्लिम वोट की राजनीति के आगे देश को शर्मसार किया है. आतंकियों को पनाह देने वाले और खुद आतंकी हम आम जन से ज्यादा सुरक्षित और मजे में है. सवाल देश-भक्ति का नहीं राजनीतिक स्वार्थ का है. प्रजातंत्र का सबसे बड़ा डिमेरीट यही है कि यदि इसके प्रतिनिधि इसका इस्तेमाल स्वार्थपरक उद्येश्यों के लिए करते हैं तो यह सुसाइडल साबित होता है. ईश्वर इनको सद्बबुद्धि दे कि ये कश्मीर को मिस्र से जोड़कर देख रहें हैं और सरकार काला चश्मा पहने बैठी है. भारत के विदेश मंत्री यू एन ओ में पुर्तगाली मंत्री का भाषण पढ़ते हैं और इस भूल पर खेद तक व्यक्त नहीं करते अपितु इसे ग्लोरिफाई कर कहते हैं कि 'दूसरों का भाषण पढ़ना कोई गलत बात नहीं है. मैं क्या कर सकता हूँ मेरे सामने ढेरों कागजात थे अत: ऐसा हो गया.' अब ऐसे विदेश मंत्री का कहना हो तो एक दिन कश्मीर देकर कहेंगे ये तो देना ही था......
कश्मीर पर क्रमागत ऐतिहासिक जानकारी देकर जागरुक करने के लिए धन्यवाद और आपके रेल में दिखाये गये साहस पर बधाई. प्रेरणापद संस्मरण.
होमनिधि शर्मा
दिव्या जी, सुन रही ... मेरा मतलब पढ़ रही हैं ना आप :)
ReplyDeleteसुंदर विवेचन!
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग्गिंग ने मेरे विचारों को और मेरे बहुत से साथियों के विचारों को पर लगा दिए हैं . धन्यवाद् ब्लागस्पाट एंड गूगल
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